Orchha History / ओरछा मन्दिर का इतिहास

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Orchha History
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Orchha History In Hindi

Orchha History श्री राम भगवान का यही एक मन्दिर हैं, जिसको हम सभी श्री राम भगवान को राजा के रूप में पूजा करते हैं इसका क्या कारण है हम आगे बतायेंगे।

ओरछा भारत के मध्य प्रदेश राज्य के निवाड़ी जिलें का एक कस्बा हैं 1501 के बाद रूद्र प्रताप सिंह द्वारा बुन्देलखण्ड क्षेत्र के मध्य भारत की पूर्व रियासत की एक प्रसिद्ध राज्य की सीट के रूप में Orchha MP शहर की स्थापना की गयी थीं। Orchha History

orchha mp - orchha tempe

ओरछा बेतवा नदी पर स्थित हैं। यह टीकमगढ़ से 80 किमी और उत्तर प्रदेश में झाँसी से 15 किमी की दूरी पर स्थित हैं।

आप ये जानोगे

  • ओरछा की उत्पत्ति ,
  • राम राजा का आगमन,
  • बुन्देल वंश की व्युत्पत्ति,
  • घूमने बाली जगह,

ओरछा की स्थापना Orchha History

श्री रूद्र प्रताप सिंह जी , जो की गढ़कुंडार के राजा थे, श्री रूद्र प्रताप सिंह जी एक दिन वेतवती तट ( बेतवा नदी ) के घने जंगलों में शिकार करने के लिए गए थे.

लेकिन शिकार करने के लिए कोई जानवर नहीं मिला, जब श्री रुद्र प्रताप सिंह जी को शिकार ना मिला तो वह बहुत हैरान हुये।

Then शिकार खोजते खोजते श्री रूद्र प्रताप सिंह जी एक शुभ स्थान पर पहुंचे गये, बेतवा नदी कल कल करके बह रही थी और सुनहरा मौसम चारो दिशाओं में मोर पपीहा बोल रहे थे।

उसी स्थान पर तुंग ऋषि तपस्या कर रहे थे, तो श्री रूद्र प्रताप जी ने ऋषि के ऊपर साथ लाये भूखें कुत्तों को छोड़ दिया।

कुत्तों की आवाज सुनकर तुंग ऋषि के मुँह से कुछ शव्द निकले ( ओच्छे ओच्छे ) लेकिन कुत्तों ने ऋषि पर हमला कर दिया तो तुंग ऋषि ने क्षण भर में उन कुत्तो को मर गिराया,

तो श्री रूद्र प्रताप सिंह जी ने ऋषि के साहस को देख कर उनके हृदय से कुछ शव्द निकले तो उनके मन से ओरछा नाम आया। तप और साहस की इस भूमी में इस शहर का नाम ओरछा हो गया,

तभी से इस नगर को ओरछा कहने लगें।

Welcome Ram Raja to Orchha

मधुकर शाह महाराज कृष्ण परम भक्त थे और उनकी पत्नी राम लाला की परम भक्त थीं। एक बार राजा और उनकी पत्नी खाना खाने के बाद आध्यात्मिक और ईश्वर के चर्चा होने लगी।

तो बात करते करते दोनों अपने ईश्वर को लाने की होड़ लग गयी, सुबह होते ही राजा ने अपनी पत्नी से कहा चलो बृंदाबन में तुम्हे अपने ईश्वर से मिलाने ले चलता हूँ, तो महारानी ने जाने से इंकार कर दिया।

तो महारानी गनेशी ने कहा हमारे इष्ट भगवान वालरूप में दशरथ नन्दन श्री राम लला जू हैं, में उनकी ही दासी हूँ. में उनकी भक्ति के शिवा किसी और की भक्ति नहीं कर सकती।

दोनों में काफी गहरी बात चीत हुयी लेकिन ये पता न चल सका की किस की भक्ति पक्ष की विजय हो पायी, अंत में प्रत्यक्ष्य रूप अपने अपने प्रभू को Laane का निर्णय हुआ।

तब महाराज ने अपने गुरु व्यास जी को यह भक्ति की सारी बात सुनाई, तब गुरु देव ने महाराजा को समझाया की रानी जी बचपन में शिव और पार्वती की पूजा करती थी।

तभी शिव जी ने श्री राम भक्ति का वरदान दिया था, तभी से महारानी राम भक्त हो गयी, इसीलिए रानी को प्रभु श्री राम प्राप्त हो जायेंगे। रानी ने लक्ष्मन किला के पास तपस्या शुरू कर दी.

महारानी प्रभू राम को पाने की आशा में एक महीने तक खाना पीना थोड़ दिया और तपस्या में लीं हो गयी फिर महारानी तक कर और निराश हो कर मरने की द्रष्टी से नदी में कूद गयी। Then भगवान श्री राम ने अपने भक्त को नदी के किनारे बैठा दिया और स्वयं ही वालरूप में आकर महारानी मि गोद में बैठ गये.

तब महारानी की समाधी खुली तब उन्होंने देखा की प्रभू श्री राम लला वालरूप में गोदी में मुस्कुरा रहे थे तभी सभी भक्तो में श्री राम लला के जयकारे लगाये, महारानी ने श्री राम लला से कहा की महाराजा का सम्मान रखने के लिए आप हमारे साथ ओरछा चालिये।

Because की महाराजा का वचन है की श्री राम लला को ओरछा लाओ तभी तुम्हारी भक्ति श्रेष्ठ मानी जायेगी।

तभी श्री राम लला ने 3 वचन निभाने के लिए कहा –

प्रथम वचन

मैं पुख्य नक्षत्र में ही प्रस्थान करूँगा, जहा पुख्य नक्षत्र समाप्त होगा वही पर विश्राम करूँगा और साधु संतों के साथ कीर्तन करते हुये पुनः पुख्य नक्षत्र आने पर ही आगे प्रस्थान करूँगा।


दूसरा वचन –

जब में एक स्थान पर बैठ जाऊगा फिर वहां से अन्य स्थान नहीं जाऊँगा।


तीसरा वचन –

में जहा का राजा कहलाऊंगा वह पर कोई दूसरा राजा न होगा वहां पर मेरा ही राज फरमान होगा।

इन तीनों वचन को मन कर श्री राम लला हमारी ओरछा नगरी में पधारें, और फिर ओरछा को रामराजा की नगरी कहा जाने लगा। और श्री रामलला का राज चलने लगा।
और जो भी राजा थे उन्होंने टीकमगढ़ को अपनी राजधानी बना लिया .

राम लला और ओरछा धाम की कुछ तस्वीरें –

बुन्देल वंश की व्युत्पत्ति –Establishment of Bundelkhand

सन 905, वीर भद्र महाराज जिन्होंने वनारस के राजा बांके राज किया इनकी दो पत्नी थीं। और दोनों पत्नी से इनको 3 पुत्र प्राप्त हुए थे,

वीर भद्र महाराज जब स्वर्ग सिधार गये तब उनके राज्य के तीन हिस्से हुये, तो दो भाइयों ने हेम करन के हिस्से को हड़प लिया और हेम कारन को दासी की भाति काम करबाया।

कुछ दिनों बाद हेम करन ने अपने राज्य को वापस लेने की ठानी। इसके लिए हेम करन विंध्यांसनी माता को प्रसंन करने के लिये ज्योही अपना सर काटने बाले थे,

तब माता ने उनको बलि देने से बचा लिया ओर जो तुम्हे चाहिए बो काम पूरे होंगे तुम अपने आप पर सयम बनाये रखना।

हेम करन ने अपने शरीर से 5 रक्त की बूंद बहाई। पांच रक्त और साहस बड़ा तो उन्हें पंचम सिंह कहने लगे।

कुछ स्थानों का नाम भी बुन्देलखण्ड से ही स्टार्ट होता हैं, बुन्देखण्ड यूनिवर्सिटी , बुन्देलखण्ड होटल , बुंदेलखंड प्राइड

  • घूमने वाली जगह –
  • राम राजा मन्दिर ,
  • कुँवर हरदौल जी ,
  • सावन भादों ,
  • चतुर्भुज मन्दिर,
  • पालकी महल ,
  • चन्दन कटोरा ,
  • जहाँगीर महल ,
  • शीश महल ,
  • वेतबा नदी ,
  • मकवरे ,
  • महा कवी केशव जी की कुटिया ,
  • लक्ष्मी मन्दिर ,
  • छारद्वारी मन्दिर,


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